। श्री पाबुजी राठौड़ की कथा ।
( पाठकों से निवेदन है कि इस लेख को इतिहास कि कसौटी पर ना परखे क्यों कि यह एक कथा है और जन मानस के मुख से सुनी हुइ है )
पाबुजी विक्रम संवत रै चवदमै सईकै
में हुया हा-
इणमे किंणी
तरह रौ कोी
वैम नीं, पण
उणां रै 24 बरसां रे
जीवण-काल री
सही संवतां साफ
रूप सूं उजागर नीं
है। पाबुजी रौ
संबंध मारवाड़ रै राठौड़ राजवंश सूं रैयौ है।
अै राव सीहा
रा पड़पोता, राव
आस्थान रा पोता अर
धांधल रा बेटा हा।
राव आस्थान रै
आठ बेटां में
सूं धांधल दूजा
बेटा हा, पाटवी बेटा
हा धूहड़, जिका
वां रै बाद
राव बणिया। धांधल रै
दो बेटा हा-
बूड़ा अर पाबू। धांधल चौहाणां नै
हराय'र कोलू
जीत्यौ हौ, जिको आजकाल फलौदी तैसील में
आयोड़ो है। सो इणां
रौ शासन कोलू
माथै रैयो।
जगचावा वीरवर पाबुजी रौ जनम 1239 ई. में अर देहांत 1276 ई. मांय हुयौ मानीजै।
'मुंहता नैणसी री
ख्यात' अर दूजी प्रचलित कथावां अर
किंवदंतियां
मुजब अै अेक
अप्सरा रै गरभ सूं
पैदा हुया हा।
आं रा पिता
धांधल पाटण रै तलाव
रै किनारै सूं
अेक अप्सरा नै
लेय आया हा
अर उण सूं
ब्याव कर'रकोलूगढ आयग्या हा।
उठै इज उणां
रै गरभ सूं
दो संतानां- अेक
पुत्र अर अेक पुत्री हुई।
पुत्र रौ नाम पाबुजी अर
पुत्री रौ नाम सोनाबाई राखीजियौ। दूजी
पत्नी सूं ई धांधल रै
दो संतानां हुई-
अेक पुत्र अर
अेक पुत्री, जिणां रौ
नाम क्रमवार बूडा
अर पेमाबाई हौ।
धांधल री मिरतु हुयां कोलूं रौ
अधिकार बड़ै बैटै बूड़ा
नेै मिलियौ। बूड़ा
राज करता अर
पाबुजी भोमियै रै रूप मांय
जीवण यापन करता
हा। अै नित
सांड माथै सवार
हुय'र सिकार करण
नै जाया करता
हा, अर छोटी
उमर मांय ई
बडा-बडा काम
कर'र दिखावता हा।
उण बगत आना बाघेला अेक वीर राजपूत हौ। उणरै अठै थोरी जात रा चांा, डामा, खाबू, पेमा, खलमल, खंगार अर वासल नाम रा सात मोट्यार नौकर हा। अै सातूं ई अेक मां रा बेटा हा अर बड़ा ई सूरवीर हा। अेकर आना बाघेला रै राज्य मांय दुकाल पड़ियौ । अै सातूं ई भाई भूख सूं आकल-बाकल हुयोड़ा अेक दिन अेक जिनावर नै मार दियौ। खबर मिलतां ई राजा रौ कुंवर इणां नै अैड़ौ करण सूं रोकियौ। बात बधियां लड़ाई ठणगी अर लड़ाई ठणगी अर लड़ाई मांय राजकुंवर मारियौ गयौ। त राजा रै डर सूं डर'र थोरी परिवार आपरौ सामान अर आपरा टाबर-टूबरां नै लेय'र भाग छूटिया। आना बाघैला नै खबर मिली तौ वो इणां नै जाय घेरिया। जुद्ध मांय आं सातूं भाइयां रौ बाप वीरगति नै प्राप्त हुयौ। आना बाघेला इणसूं इज संतुष्ट हुयग्यौ अर पाछौ आपरै म्हैल गयौ परौ। सातूं ई थोरी भाई अठी-उठी भटकण लागिया, पण कोी ई इणां नै शरण देवण नै त्यार नीं हुयौ। आखिर में अै पाबू कनै गया अर पाबू इणां नै शरण देय दी। अै पाबुजी रा अनुयायी बणग्या अर उणां रै साथै रैवण लागिया। आं सातूं थोरी भाइयां री मदत सूं पाबुजी वीरता रा केई काम करिया, जिणां में सूं कीं खास इण भांत-
बैन सोनाबाई सासरै मांय
आपरै भाई री
बुराई नीं सुण सकी
ही, जिणसूं उणरौ
पति सिरोही रौ
राव देवडै कोड़ा
मारिया। नतीजन पाबुजी आपरै बैनोई ने
पकड़ लाया अर
बैन रै अभयदान मांगियां छोड
दिया।
भाभी डोडगहेली रै
तानौ मारियां अै
उणरै भाई नै
डीडवाणां सूं मुसकां बांध'र पकड़ लाया
अर भाभी नै
दिखाय'र उणरै कैयां छोड
दियौ।
सैयोगी थोरी भाइयां रे
कैयां उणां रे पिता
रै हत्यारै आना
बाघेला नै मारियौ अर
उणरौ बेटौ शरण
में आयां राज्य उणनै
सूंप दियौ।
आपरी भतीजी नै
ब्याव रे बगत दियौड़ै वचन
मुजब पाबुजी आपरे
सेवक हरमल राईकै नै
ठाह करण वास्तै मेलियौ, तद
हरमल राईकै पाछै
आय'र बतायौ के
जिण लंकाथली री
सांढियां चावी है, जिकी
अेक कठण जागा
है अर उठै
रै अधिपति नै
दूजौ रावण समझियौ जावै
है। इण भांत
उठै सूं ऊंठां रौ
टोलौ लावणौ सैज
काम नीं है।
पण पाबुजी लंकाथली री
सांढियां पचन मुजब दूदा
सूमरा सूं सांढ़णियां लाय'र दीवी।
जद ऐ दूदा
सूमरा सूं सांढ़ां खोस'र उमरकोट रै
कनै सूं निकल
रैया हा, तौ
गोखड़ै में ऊभी राजकुंवरी इणां
रै तेज नै
देख'र मोहित हुयगी। वा
आपरी मां सूं
इणां रै साथै
ब्याव करण री इच्छा प्रगट करी।
पाबुजी नै इणरी सूचना भेजीझी। तद
पाबुजी जबाब दियौ के
अबार तौ म्हैं सांडां लेय'र जाय रैया
हां, पाछा आय'र ब्याव करांला। सोढां उणी
बगत नालेर देय'र अर टीकौ
कर'र सगाई
पक्की कर दीवी।
अेक बरस बाद जद अै बरात सजाय'र रवाना हुया तौ मारग मांय अपसुगन हुया। साथै रा लोग बरात पाछी लिजावण सारू घणौ ई कैयौ, पण अै नीं मानिया। सब लोग तौ पाछा रवाना हुयग्या, पण अै डामा नै लेय'र ब्याव करण नै आगै चाल पड़िया। बड़ी ई धूमधाम सूं इणां रौ ब्याव हुयौ। अै तीन फेरा लेलतां ई उठै सूं कूच करण री त्यारी कर दी। पाबुजी आपरे वचन मुजब चंवरीमें बैठी (तीन फेरा लियोड़ी) राणी सोढी नै छोड'र घोड़ी केसर कालमी उपर चढिया। क्यूंकै चौथै फेरै री त्यारी हुवण लागी, इत्तै में ई कालमी हिणहिणावती पौड़ पटकणा सरु करिया, तद पाबुजी समझग्या के देवल री गायां री वाहर चढणी है। जद लोगां इणरी बजै जाणणी चायी, तौ अै मारग मांय हुयै अपसुगन री बात बताई अर उणी बगत बावड़णौ जरूरी कैयौ। वीर पत्नी सोढी नै जद इणरौ पतौ चालियौ, तौ वा ई साथै इज विदा हुवण रौ हठ करण लागी। पाबू रै ब्याव मांय इणां रा बैनोई जींदराव खींची ई याा हा। कच्छ रै अेक चारण कनै अेक कालमी घोड़ी ही जिकी बडी ई करामाती ही। इण बजै सूं चारण उणनै नीं ब ेचण रौ निस्चै कर राखियौ हौ। जींदराव खींची उणनै खरीदणी चावतौ हो, पण चारणां नी दीवी। पाबूरै बडै भाई बूड़ा नै ई आ घोड़ी वै नीं बेची। पण चारणां आ घोड़ी पाबू नै इ मबात माथै देय दी ही के कोई विपत आया अै ऊणां री मदद करैला। सो इण बगत कालमी घोड़ी पाबू रै कनै ही। जींदराव खींची इम बात नै यात कर'र बदलौ लेवण रौ औ मौको अच्छौ समझियौ। वौ चारणां री गायां रौ अपहरण कर'र लेय चालियौ। तद देवल देवी, 'मुंहता नैणसी री ख्यात' मुजब बिरवड़ी आय'र गायां छुडावण री प्रार्थना करी, पण बूड़ा बायनौ बणाय'र मदत करण सूं नटग्या। तद देवी पाबू रै खास आदमी चांदा सूं जाय'र बोली के पाबू तौ अठै है नीं, सो थूं ई मदद कर। आ बात पाबू सुण लीवी। वै बारै आया। आपरै साथियां नै लेय'र खींची नै जाय धेरियौ। लड़ाई सरू हुयगी। खींची रा घणा सारा आदमी मार्या गया। गायां छुड़वाय लिरीजी अर पाबुजी आपरै गाम कोलू बावड़ग्या। इणी बगत कोई असैंधौ आदमी आय'र बूड़ा नै पाबू रै मार्यौ जावण री झूठी खबर देय दी। बूड़ा आपरी सेना लेय'र खींजियां नै जाय धेरिया। खींची कैयौ के पाबू पाछा गया परा है, अबै मत लड़ौ। पण बूड़ा इण बात माथै विसवास नीं करियौ। लड़ाई हुई अर बूड़ा वीरगति नै प्राप्त हुयग्या। बूड़ा रै मार्यौ जावण सूं खींची अणूंता ई डरग्या। वै सोचण लागिया के अबै पाबुजी नै नीं मारियै तौ आपां रौ जीवणौ मुस्कल है। बूड़ै रेै काम आवतां ई खीची जींदराव रै पेट में खलबली मची के अबै पाबुजी अेक ई खीची नै जीवतौ नीं छोड़ै। अै डर रा मार्या कुंडल रै बुध भाटी पम्मै री शरण में गया। भाटी पम्मौ धोरंधार रै नाम सूं ओलखीजतौ। बडौ अपरबल। भाटी पम्पौ खुद आपरी फौज नै लेय'र खीचियां रौ फौज में आय मिल्यौ। दोनां री भेली सेना पाबू माथै चढाई कर दीवी। देचू मांय धमासाण जुद्ध हुयौ। पाबू आपरै सैनिकां समेत वीर गति नै प्राप्त हुया। इणां री पत्नी इणां रै साथै सती हुयगी।
आखै मारवाड़ रा
लोग पाबुजी नै
देवता री तरै पूजै। केई
जगावां मैथै पाबुजी रा
छोटा छोटा मिंदर बण्योड़ा है,
जिणां मांय ईणा री
घौड़ै माथै चढ्योडै री
मूरतियां है अर साथै
दो साथी चांदा अर
डमा है। फलोदी सूं
18 मील
दिक्खण मांय कोलू गाम
मांय आयौड़ौ पाबुजी रौ
मिंदर खास है, जिकौ
भादवै सुदी 11, वि.सं. 1445 नै बण्योड़ौ है।
मारवाड रै गामां मांय
थोरी जात रा
लोग आज ी
पाबुजी रौ गुण-गान
करता फिरै। इणां
रै कनै अेक
बड़ी चादर हुवै,
जिण माथै पाबुजी रै
जीवण-काल री
अनेकूं घटनावां कोरियोड़ी हुवै। इण तरै रै
प्रदरसण नै 'पड़ बांचणौ' कैवै,
अर चादर नै
'पड़'। पाबुजी री
पड़ अेक महताऊ दस्तावेज है।
थोरियां रा इष्टदेव ई
पाबुजी इज है। थोरी
जात रा स्त्री पुरस
अर बालक पाबुजी री
चांदी री मूरती गलै
मांय पैरै।
वीरता, प्रतिज्ञा-पालण, त्याग, सरणागत वत्सलता अर
गौरक्षा रै वास्तै बलिदान हुवण
रै कारण राजस्थान रौ
मानखौ पाबुजी नै देवता रै
रूप मांय पूजै।
लोक विसवास है
के पाबुजी नै
मनौती करण सूं ऊंटां री
बीमारी मिट जावै। मनौती रै
रूप में भोपां कानी
सूं 'पड' बंचवाईजै। आथूणी मारवाड़ मांय
राठौड़ घणकरा पाबुजी रौ इष्ट राखै। जोधपुर रेकॉर्ड सूं
ठा पड़ै के
कोलू में पाबुजी री
पूजा धांधल राठौड़ इज
करै। लोक विसवास मुजब
पाबुजी रै नाम सुमरण सूं
भूंत-प्रेतां रौ
डर नीं रैवै। पाबुजी री
जीवणी बाबत मोडजी आसिया रौ
ग्रंथ 'पाबू प्रकाश' चावौ
है।
अेक दूहै मुजब कीरत रा कमठाण प्रणवीर पाबुजी रौ जस तद तांई कायम रैसी जद ताई गिरनार अर आबू जैड़ा परबत रैसी- उड जासी आबूह, गिरनारौ जासी गरक । प्रथमी पर पाबूह, मणधारी रैसी अमर ।। सहर कोय ठाकर चढै, भुज पाकड़ भालौह । तिण रौ जस बाबू तणौ, पौरस रौ प्यालोह ।। |
श्री पाबुजी राठौड़ |
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